बॉलीवुड में स्टारडम का मतलब अक्सर होता है — भीड़ खींचना, करोड़ों की कमाई, और चमक-दमक से भरी ज़िंदगी। लेकिन कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जो इस चमक के पीछे की गहराई को चुनते हैं। के के मेनन (Kay Kay Menon) का नाम इन्हीं कलाकारों में आता है। उन्होंने हमेशा स्क्रिप्ट, किरदार और कहानी को तवज्जो दी — चाहे फिल्म हिट हो या फ्लॉप।
हालांकि के के मेनन ने कई कमर्शियल फिल्मों में भी काम किया, लेकिन उनकी कुछ ऐसी फिल्में भी हैं जो बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पाईं। फिर भी, इन फिल्मों ने धीरे-धीरे दर्शकों के दिलों में खास जगह बना ली और ‘कल्ट क्लासिक’ बन गईं।
ये फिल्में सिर्फ एक्टर की काबिलियत नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा की सोच को भी रिप्रेजेंट करती हैं।
कहानी की शुरुआत: जब एक्टिंग बन गई जुनून
के के मेनन ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की। वो हमेशा से ही एक सोचने-समझने वाले अभिनेता रहे हैं। उन्हें उस तरह का स्टारडम कभी नहीं चाहिए था जो चमकदार पोस्टर्स या बड़े बजट से आता है।
उन्हें चाहिए थी ऐसी स्क्रिप्ट जिसमें किरदार की परतें हों। इसीलिए उन्होंने ऐसी फिल्मों का चुनाव किया जो आम दर्शकों को समझने में वक्त लगा, लेकिन जिनमें सिनेमा की आत्मा थी।
एक्टिंग छोड़ने का मन बना चुके थे के-के मेनन? जानिए फिर कैसे बदली ज़िंदगी
फ्लॉप लेकिन फाइन आर्ट: ये फिल्में जो रह गईं पीछे… लेकिन बनीं अमर
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Black Friday (2004): हकीकत से भरी एक डरावनी तस्वीर
अनुराग कश्यप की इस फिल्म ने 1993 के मुंबई ब्लास्ट्स की सच्चाई को बिना फिल्टर दिखाया। के के मेनन ने पुलिस ऑफिसर राकेश मारिया की भूमिका निभाई, जो अपने शांत लेकिन दृढ़ स्वभाव के लिए याद किए जाते हैं।
हालांकि फिल्म की रिलीज़ सेंसर बोर्ड के चलते टलती रही, और जब आई तो दर्शक तैयार नहीं थे। नतीजा — बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप।
लेकिन बाद में, इसे फिल्म स्कूलों में पढ़ाया जाने लगा। ‘Black Friday’ आज भी सबसे रियलिस्टिक क्राइम फिल्मों में गिनी जाती है।
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Hazaaron Khwaishein Aisi (2003): जब इश्क और इंकलाब टकराए
इस फिल्म में के के मेनन ने ‘सिद्धार्थ त्यागी’ का किरदार निभाया — एक आदर्शवादी युवक जो सिस्टम से इतना तंग आ चुका है कि क्रांति का रास्ता अपनाता है।
फिल्म 1970 के दशक की राजनीति और इमरजेंसी के दौर की पृष्ठभूमि में थी। बॉक्स ऑफिस पर इसे वो रिस्पॉन्स नहीं मिला जिसकी उम्मीद थी, क्योंकि यह फिल्म आम मसाला दर्शकों के लिए नहीं थी।
लेकिन आज, ये फिल्म उस दौर की सोच, युवा ऊर्जा और सामाजिक संघर्षों की सबसे संवेदनशील प्रस्तुति मानी जाती है।
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Paanch (2001): फिल्म जो कभी सिनेमाघर तक न पहुंची
‘Paanch’ एक अनोखी कहानी थी — पांच दोस्तों की जो ड्रग्स, मर्डर और मनी के चक्कर में फंसते चले जाते हैं। के के मेनन का किरदार बेहद इंटेंस और डार्क था।
यह फिल्म अपनी रिलीज़ से पहले ही सेंसर बोर्ड की कैंची का शिकार हो गई। लेकिन जब लीक होकर ऑनलाइन सामने आई, तो दर्शकों ने इसे हाथोंहाथ लिया।
कई लोगों के लिए यह उनकी पहली “अनुराग कश्यप + के के मेनन” अनुभव थी। आज इसे ‘कल्ट क्राइम थ्रिलर’ के रूप में जाना जाता है।
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Gulaal (2009): सत्ता, जातिवाद और छात्र राजनीति की आंधी
‘Dukki Bana’ — ये नाम आज भी उन लोगों की जुबान पर है जो कॉलेज कैंपस में राजनीति या समाजशास्त्र पढ़ते हैं।
के के मेनन का यह किरदार एक ऐसा शख्स था जो सत्ता को हथियाने के लिए छात्रों को उकसाता है, भड़काता है और आखिरकार सब कुछ बर्बाद कर देता है।
फिल्म कमर्शियल नहीं थी, इसीलिए दर्शक कम आए, लेकिन जिन्होंने देखी — उनके लिए यह अनुभव आज भी ज़िंदा है।
‘Gulaal’ आज छात्रों की राजनीति की सबसे गहन और प्रासंगिक फिल्मों में मानी जाती है।
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Sankat Metropolis (2009): ह्यूमर और क्राइम का अनदेखा कॉम्बो
यह फिल्म एक खोई हुई कार, अंडरवर्ल्ड और चोरों की दुनिया में घूमती है। एक हल्की-फुल्की क्राइम-कॉमेडी जो अपने वक्त से बहुत आगे थी।
के के मेनन ने इसमें एक चोर की भूमिका निभाई जो हालात से ज्यादा अपने दिमाग से लड़ता है।
यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही, शायद इसलिए क्योंकि मार्केटिंग कमजोर थी। लेकिन यह फिल्म उन दर्शकों के लिए रत्न है जो ऑफबीट कॉमेडी के दीवाने हैं।
क्यों बनती हैं ये फिल्में ‘कल्ट क्लासिक’?
इन फिल्मों में कोई बड़ा सितारा, आइटम सॉन्ग या फॉर्मूला नहीं था। था तो सिर्फ दमदार स्क्रिप्ट, रियलिस्टिक डायरेक्शन और के के मेनन जैसा अभिनेता, जो किरदार में घुल जाता है।
वक्त के साथ दर्शकों की समझ बदली और उन्होंने इन फिल्मों को दोबारा देखा — इस बार दिल से। और यहीं से इनका सफर शुरू हुआ — फ्लॉप से कल्ट तक।
के के मेनन आज भी उसी राह पर चल रहे हैं। उन्हें ज़रूरत नहीं करोड़ों की कमाई या 100 करोड़ क्लब की।
उन्हें चाहिए ऐसी फिल्में जो लोगों के सोचने के तरीके को बदलें। और यही वजह है कि उनकी “फ्लॉप” फिल्में आज हजारों सिनेमा प्रेमियों के लिए बाइबिल जैसी हो गई हैं।
अगर आप भी सिनेमा को सिर्फ एंटरटेनमेंट नहीं, एक आर्ट मानते हैं — तो इन फिल्मों को जरूर देखिए। क्योंकि यहां के के मेनन एक स्टार नहीं, एक मंझा हुआ कलाकार बनकर उभरते हैं।